सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

मुहावरे व लोकक्तियाँ - गढ़वाली व कुमाऊँनी मे [भाग १]



मुहावरे व लोकक्तियाँ - गढ़वाली व कुमाऊँनी मे बहुत सी है यहाँ हर भाग मे १० -१० मुहावरे व लोकक्तियों को बताया जाएगा  - हिन्दी अर्थ व भावार्थ के साथ और जहां संभव हो पाया वहाँ अँग्रेजी मे भी दिया जाएगा। 

गढ़वाली 

१. जख बिलि नी तख मूसा नचणु। 
जहां बिल्ली नही वहाँ चूहे नाच रहे।
where there is no cat mice dance.
[भावार्थ: जहां नियंत्रण नही होता वहाँ हम गलत कार्य कर सकते है। ]

२. थोडि जगा गिलो आटो 
थोड़ी से जगह और आटा गीला [यानि कंगाली मे आटा गीला]
narrow quarters and thin gruel.
[ हालात बाद से बदतर होने पर ]

३. खाली हथ मुखमा नी जांदु 
खाली हाथ मुँह में नही जाता।
an empty hand[with no food] does not go into the mouth.
[भावार्थ: बिना पैसे(फल) के कोई काम नही करता ]

 ४. जखि देखि तवा-परात, वखि बिताई सारी रात.
जहाँ देखा तवा परात, वहीँ गुजारी सारी रात।
[भावार्थ-अपनी सुविधानुसार स्वार्थ सिद्ध करना]

५.जु नि धोलु अपनौं मुख,ऊ क्या देलो हैका सुख.  
जो अपना मुँह [चेहरा] नहीं धोता, वो दूसरों को क्या सुख देगा.
[भावार्थ- जो अपना कार्य स्वयं न कर सके वह दूसरों का क्या हित करेगा]

६. तिमला-तिमलो खत्या, नंग्या-नन्गी द्यख्या.
सारे तिमला [एक फल] भी गिर गए, नंगे भी दिख गए.
[भावार्थ- हानि के साथ-साथ सम्मान भी खो देना]

७. टका न पैसा, गौं-गौं भैंसा. 
रूपये न पैसे, गाँव-गाँव भैंसे.
[भावार्थ- आर्थिक रूप से दुर्बल होने पर भी सम्पनता के सपने देखना]

८. अफू चलदन रीता, हैका पढोंदन गीता.
अपने आप चलते खाली, दूसरों को पढ़ाते गीता.
[भावार्थ- स्वयं ज्ञान न होने पर भी दूसरों को ज्ञान बाँटना]

९. सौण सूखो न भादो हेरो । 
न सावन सूखा न भादों हरा ।
neither sawan is dry nor bhado is green
[भावार्थ : दो चरित्रो के क्रूरता पूर्वक रवैये को दर्शाते हुये ]

१०. लेणु एक न देणु द्वी। 
न एक लो न दो किसी को दो
neither take one, nor pay back two
[भावार्थ :यह एक सीख है कि ना एक किसी से (पैसे उधार लेना] न उसको दो देना पड़ेगा यानि ब्याज भी नही देना पड़ेगा]

कुमाऊँनी 

१.हुने छा: एक सपक , ना हुने छा: सो सपक 
बनने वाला मट्ठा(छा:छ) एक बार में ही बन जाता है और ना बनने वाला सो बार में भी नहीं
[भावार्थ: होने वाला काम एक बार में ही हो जाता है ]

२.जे खुट त्याढ़ ह्वाल वो भयो पडल.
जिसके पाँव टेड़े होते हैं वो गड्ढे में ही गिरेगा
[भावार्थ: जो जैसा होगा वैसा ही फल पायेगा ]

३.बुद्धि आलि अपुन घर ,रीस आलि पराय घर .
बुद्धि होगी तो अपने घर ,गुस्सा आये तो पराये घर
[भावार्थ: बुद्धिमान अपने घर में गुस्सा नहीं दिखाते ]

४.ना ग्ये अल्माड ,ना लाग गलमाड .
[भावार्थ:घर से बाहर जाकर ही हकीकत पता लगती है ]

५. कयो बीज लेन लगाय ,चेल खान खाने आय 
कयो(छोटा मटर ) का बीज लेने बच्चे को भेजा तो वो बीज को  खाते खाते आया
[भावार्थ:"लापरवाही" के लिए ये मुहावरा प्रयोग किया जाता है  ]

६. सौ ज्यू गुड़ खावौ लेख लेख लेख 
सर जी गुड खाओ, लिख, लिख, लिख देना
welcome sir eat some treacle, write, write, write it down.
[यह कहावत बनियों/व्यापारियों के लिए है जो प्यार से बुलाते कर कहते है आओ गुड खाओ लेकिन अपने मुनीम को कहते है की जो खाया सब लिख देना हिसाब मे ]

७. रूप रीश नै, कर्म बांटो नै 
किसी के रूप से जलन नही, न किसी के कर्म बाँट सकते
no one should envy another's fair countenance, and no one can share another's fate
[आप को किसी की खूबसूरती से जलन नही करनी चाहिए यह ठीक वैसा ही है जैसे की आप किसी के कर्म नही बाँट सकते ]

८. घुरुवा को पिसू,घुरुवा को तेल सबनी द्वी-द्वी ,
घुरुवा को देडघुरू ले लात हाणी ,घिंघारू घेड़ 
सब कुछ कोई करे और अंत में उसी की पूछ ना हो
अर्थ: ये गावों में प्रचलित एक किस्सा है घुरुवा (आदमी का नाम) जिसका की आटा और तेल दोनों था,पुरिया तलने पर सब को २-२ मिली और उसे सिर्फ देड(१ और १/२)और उसे लात मार कर घिंघारू के घेड़ (झाड) में फैक दिया ...... ये तब प्रयोग होती है जब

९. लेखो पल पल को लिजी जालो 
पल पल का किया लिखा जाता है।
every moment will have to be accounted for
भावार्थ : भगवान का न्याय हर कार्य पर होता है

१०. खेल खेलारि को घोड़ो सवार को 
plays are for players and horses are for riders
खेल को खिलाड़ी खलेते है और घोड़े पर घुड़ सवार बैठते है अर्थात चीजे उनके लिए ही होती है जो उसका प्रयोग करना जानते है और कैसे नियंत्रण करना होता है।


[सहयोग - महेंद्र सिंह राणा / कौशल उप्रेती /प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ]

उत्तराखंड की भाषा आप ते अपना संस्कृति क दगड़ जुडदी!
center> Related Posts Plugin for WordPress, Blogger.../center>